Shardiya Navratri: September 2025: शिव और प्रकृति (शक्ति) से सृष्टि का उद्भव सम्भव हुआ है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्री, महागौरी और सिदिॄदात्री आदिशक्ति नौ दुर्गा पराशक्ति प्रकृति की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व एंव ब्रह्मांड के समस्त प्राणियों को शक्ति प्रदान करने वाली देवी पार्वती का रुप है। भगवान शिव को संपूर्ण ब्रह्मांड का पिता और देवी पार्वती को माता माना जाता है। भक्ति क्षमा एंव शान्ति की अत्यन्त शक्तिशाली देवी शिवशक्ति जिनके बिना भगवान शिव भी अधूरे है।

काली, दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी रुपों में प्रकट होने वाली देवी पार्वती संपूर्ण ब्रह्मांड की मूल निर्माता, पर्यवेक्षक और विनाशक आदिशक्ति है। इनमें ब्रह्मांड की समस्त शक्तियाँ समाहित है। नौ देवी माँ आदिशक्ति के अठराह हाथों में श्रीहरि का चक्र, शक्ति का प्रतीक भगवान शिव का त्रिशुल, ब्रह्मा का कमंडल, वायु देव का गदा, समुद्र देव का शंख और असुरों के संहार के लिये यमराज का दिया गया फंदा धारण किये सृष्टि का संचालन और गतिमान बनाये रखने के लिये आदिशक्ति का दुर्गा रुप अनन्त शक्तियों से भरा है।
अर्दॄनारीश्वर शिव बायें हाथ में धारण किये कमल, दायें हाथ में है, त्रिशुलः
भगवान शिव के पाँच रुप सघोजात पश्चिम, वामदेव उत्तर, अघोर दक्षिण, तत्पुरुष पूर्व और ईशान मध्य यानि ऊपर की दिशा को प्रदर्शित करते है। जबकि शिव का अर्दॄनारीश्वर रुप यह दर्शाता है कि शिव और पार्वती एक दूसरे के पूरक है इस रुप के बिना सृष्टि की कल्पना असंभव है। शिव पार्वती का यह संयुक्त रुप सृष्टि के निर्माण को प्रदर्शित करता है। इसमें शिव सृजन और पालक के रुप में शोभित होते है। मान्यताओं के अनुसार जब पार्वती जी ने अपने जीवन के समस्त अनुभवों को साझा करने की बात कही तब शिव ने उन्हें अपने बायें भाग में समाहित कर लिया। इसलिये शिव अर्दॄनारीश्वर रुप में बायें हाथ में कमल और दायें हाथ में त्रिशुल धारण किये है।


अन्य कथायें यह भी बताती है कि ब्रह्मा के समक्ष शिव ने अपनी शक्ति को प्रदर्शित करने के लिये अर्दॄनारीश्वर रुप धारण किया था और यह बताया था कि शिवशक्ति प्रत्येक जगह मौजूद है शिव शक्ति आरम्भ, अतं और अन्नत सार्वभौमिक है। शिव शक्ति के बिना सृष्टि का अस्तित्व संभव नहीं हो सकता है।
भगवान शिव के अर्दॄनारीश्वर रुप का स्वरुप नर्मदा नदी के प्राकृतिक आधे काले एंव आधे भूरे रंग के शिवलिंग में दृश्याकिंत होते है इनकों तराशे बिना ही इनमें जनेऊ, ॐ, और त्रिशुल की आकृतियाँ उभरी हुई दिखायी देती है। शिव ने सृष्टि की निरन्तरता को बनाये रखने के लिये अर्दॄनारीश्वर रुप धारण किया था शिव के इस रुप से यह भी संदेश प्राप्त होता है कि व्यक्ति को आत्मिक संतुलन बनाये रखते हुये अपने भीतर के दोनों पहलुओं को दृष्टिगत रखना बेहद जरुरी है और भगवान शिव का अर्दॄनारीश्वर रुप समाज में स्त्री पुरुष के समान महत्व को भी प्रदर्शित करता है।
पर्वत की पुत्री होने के कारण आदिशक्ति को कहा जाता है, शैलपुत्रीः
नवरात्री के प्रथम दिन शैलपुत्री की पूजा की जाती है यह सती का रुप है पार्वती जी अपने पूर्व जन्म में प्रजापति राजा दक्ष की पुत्री सती थी अपने पिता द्वारा अपने पति शिव का अपमान सहन न कर पाने के कारण इन्होनें अग्निकुंड में अपने प्राणों की आहूति दे दी थी जिसके बाद इन्होनें पर्वत हिमालय और मैना की पुत्री पार्वती रुप में जन्म लिया पर्वत की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है।
जे.के. मंदिर कमला नगर में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजनः
22 सितम्बर दिन सोमवार से शुरु होने वाली शारदीय नवरात्री में गंगा किनारे बसे धार्मिक शहर कानपुर में जगह –जगह माता रानी के मंदिरों में मेला, रामलीला एंव कई रंगारंग डांड़िया और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

इस अवसर पर शहर के वर्षो पुराना प्रख्यात जे.के. मंदिर कमला नगर में भी नवरात्री के पावन पर्व पर दिनांक 22, 23, 24 और 29 सितम्बर को स्वराजंली ग्रुप, कृष्णा कला संगीत विद्यालय, कलाकुंज एंव रिद्मम डांस ग्रुप द्वारा कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें नवरात्री के प्रथम दिन सोमवार को स्वराजंली ग्रुप की शुभि, सौम्या, अर्पिता आदि छात्राओं द्वारा मंदिर प्रागंण में मनमोहक कथक नृत्य प्रस्तुत किया गया। 2 अक्टूबर दशहरे के अवसर पर जे.के. मंदिर में 70 फीट ऊँचे रावण के पुतले का दहन किया जायेगा।
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