Balochistan की खनिज संपदा पर पड़ोसियों की नजर
Balochistan:ये प्रायः देखा गया है कि जहां सम्पदा होती है, वहां लूटपाट करने वाले पहुंच ही जाते हैं। भले ही सामने वाला का अहित हो रहा हो। कुछ ऐसा ही पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान में हो रहा है। इतिहास गवाह है कि कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत को भी मुगलों के हमलों के बाद अंग्रेजों ने इसे आर्थिक रूप से कमजोर कर गुलाम बना लिया। ऐसा ही कुछ आज बलूचिस्तान में होता नजर आ रहा है। यह प्रांत भले ही गरीब हो, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों के मामले में बेहद समृद्ध है। यहां बलूचों के साथ पश्तूनों की भी अच्छी खासी आबादी है, लेकिन स्थानीय लोग अरसे से उपेक्षित हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तान और चीन मिलकर इस क्षेत्र का पूरी तरह दोहन करना चाहते हैं। वैसे इस खेल का तरीका भले ही बदला हो, लेकिन नीयत वैसी ही है जैसी कभी अंग्रेजों की रही है। हालांकि, अब बलूच लोग इतने कमजोर नहीं हैं—वे आधुनिक हथियारों के दम पर संघर्ष का हौसला रखते हैं। लेकिन, दुर्भाग्यवश हर संघर्ष की कुछ न कुछ कमजोरियां होती ही हैं, जिससे बाहरी ताकतें संसाधनों पर कब्जा करने में सफल हो जाती हैं।
Balochistan में विरोध और संघर्ष क्यों?
पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत बलूचिस्तान लंब समय से राजनीतिक अस्थिरता और संघर्ष का केंद्र बना हुआ है। यहां के अलगाववादी समूह वर्षों से पाकिस्तान सरकार से स्वतंत्रता की मांग कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण स्थानीय संसाधनों का शोषण और विकास की कमी है। बलूचिस्तान में सोना, तांबा, क्रोमाइट, कोयला, प्राकृतिक गैस और कई अन्य खनिजों के विशाल भंडार हैं। लेकिन स्थानीय निवासियों को इसका लाभ नहीं मिलता, जिससे असंतोष बढ़ता जा रहा है। आदर्श रूप से, प्राकृतिक संसाधनों का पहला अधिकार स्थानीय लोगों को मिलना चाहिए—लेकिन अक्सर बाहरी ताकतें इस दोहन में आगे रहती हैं।
चीन और पाकिस्तान की साजिश?
चीन ने पाकिस्तान में “चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर” (CPEC) के तहत लगभग 62 अरब डॉलर का निवेश किया है, जिसमें बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का विकास शामिल है। यह बंदरगाह चीन के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे उसे मध्य एशिया और मध्य पूर्व के बाजारों तक सीधी पहुंच मिलती है।
लेकिन स्थानीय बलूच अलगाववादी समूहों का मानना है कि इन परियोजनाओं से उन्हें कोई लाभ नहीं होगा—बल्कि उनके संसाधनों का शोषण होगा। इसी असंतोष के चलते चीनी नागरिकों और परियोजनाओं पर हमले किए गए हैं। जवाब में पाकिस्तान ने चीनी नागरिकों की सुरक्षा बढ़ाई, जबकि चीन ने पाकिस्तान के साथ अपने आर्थिक और रणनीतिक संबंध जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई है।
बलूच संघर्ष की जड़ें और भविष्य
अगर बलूचिस्तान के लोगों को उनका हक नहीं मिला, तो संघर्ष और तेज होगा। स्थानीय लोग अपने संसाधनों और अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं, ठीक वैसे ही जैसे भारत के लोगों ने अंग्रेजों और मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया था। बलूचिस्तान की समस्या अधिक जटिल इसलिए भी है, क्योंकि उन्हें अंतरराष्ट्रीय समर्थन नहीं मिल रहा है। पाकिस्तान सरकार बलूचों को दबाने के लिए सैन्य कार्रवाई करती रही है।
Balochistan लिबरेशन आर्मी (BLA) और उसका उभरता प्रभाव
खनिजों के अकूत भंडार और रणनीतिक महत्व के कारण बलूचिस्तान, पाकिस्तान के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। सवा सौ अरब डॉलर के विदेशी कर्ज में डूबा पाकिस्तान यहां की बेशकीमती खदानों को चीन को सौंपकर अपनी किस्मत संवारना चाहता है। वहीं बलूच लोग अब सक्रिय हो चुके हैं और किसी भी तरह अपना हक गंवाने को तैयार नहीं हैं। 1970 में बनी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) कई बार भले ही डिगमिगाई हो, लेकिन 2000 के बाद से उसने पाकिस्तानी सेना और सरकारी ठिकानों को लगातार निशाना बनाया है।
हाईजैकिंग और बलूच विद्रोह
BLA के पास वर्तमान में 6,000 से अधिक लड़ाके हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और पाकिस्तान भले ही इसे आतंकवादी संगठन मानते हों, लेकिन उनके लड़ाके इसे अपनी आजादी की लड़ाई मानते हैं। हाल ही में बलूच विद्रोहियों ने पाकिस्तान की ट्रेन हाईजैक कर ली। मात्र 100 बलूच लड़ाकों ने इतनी बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया, जो हैरान करने वाली घटना थी। अब परेशान पाकिस्तान भले ही भारत के सिर पर इस घटना का ठीकरा फोड़ रहा हो, पर दुनिया जानती है कि भारत ऐसे दुष्कर्मों में विश्वास नहीं करता और न ही आतंकवाद को शह देता है। ये सही है कि हिंसा किसी भी समाधान का अंतिम उपाय नहीं हो सकती, लेकिन जब अत्याचार चरम पर पहुंच जाता है, तो इस तरह के विद्रोह उभरते ही हैं।
क्या पाकिस्तान बलूचिस्तान को बचा पाएगा?
बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वाह पाकिस्तान के नियंत्रण से लगभग बाहर हो चुके हैं। अब पाकिस्तान और कुछ भी खोना नहीं चाहता। लेकिन अगर बलूचों को उनका हक नहीं मिला, तो यह संघर्ष और उग्र होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बलूचिस्तान अपनी स्वतंत्र पहचान बना पाएगा, या फिर बाहरी ताकतें इसे लंबे समय तक दबाए रखेंगी।
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