Radha Ashtami: राधाष्टमी के दिन रावल में वृषभानु और कीर्तिदा के घर में राधारानी प्रकट्य हुयी थी इसलिये इस दिन को राधारानी के जन्मदिवस के रुप में मनाया जाता है। राधारानी श्री कृष्ण के सभी अवतारों में उनके साथ रहती है विष्णु अवतार में उनकी पत्नी लक्ष्मी के रुप में उनका प्रकटीकरण हुआ जो विष्णु जी की शक्ति मानी जाती है

जब भगवान विष्णु श्री कृष्ण के रुप में अवतरित हुये तब राधारानी श्री कृष्ण की प्रियतमा राधा के रुप में प्रकट हुई। बहुत से संप्रदायों में राधारानी को श्री कृष्ण की शाश्वत पत्नी के रुप में भी पूजा जाता है। जब राधा जी बारह वर्ष और श्री कृष्ण आठ वर्ष के थे तब बरसाना और नन्दगाँव के बीच के स्थान पर राधा कृष्ण का पहली बार मिलन हुआ था जिसे संकेत तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
सुदामा ने राधा जी को दिया श्राप अपने प्रिय से सौ वर्षो तक झेलनी होगी विरह
राधारानी और श्री कृष्ण का प्रेम संसारिक विवाह से परे दिव्य एंव आध्यात्मिक प्रेम था कृष्ण राधा को अपनी आत्मा समझते थे।बरसाना में पली बढ़ी राधारानी की रासलीलाओं और प्रेमलीलाओं ने विभिन्न प्रदर्शन कलाओं को जन्म दिया बरसाना में राधारानी की सभी कलाओं को समर्पित स्थापित सुन्दर नाकाशीदार मंदिर इस बात का गवाह है।राधारानी और श्री कृष्ण अपनी माता के गर्भ से उत्पन्न न होकर अवतरित हुए थे। ऐसा माना जाता है कि राधारानी के क्रोध की वजह से सुदामा ने उनकों श्राप दिया था कि उन्हें अपने प्रिय से सौ वर्षो तक विरह झेलनी होगी जिसकी वजह से राधा पूर्णता श्री कृष्ण की पत्नी नहीं बन सकी।
ऋषि अष्टावक्र ने राधारानी को दिया हमेशा किशोरी (युवा) रहने का वरदान:
राधारानी को श्रीजी उनके लक्ष्मीजी के अवतार के कारण बोला जाता है जबकि किशोरी बने रहने के लिये उन्हें वरदान मिला था। ऐसा कहा जाता है कि ऋषि अष्टावक्र अपने पिता के श्राप की वजह से टेढे-मेढ़े थे जिससे लोग उनका उपहास उड़ाते थे। जब एक बार ऋषि अष्टावक्र बरसाना गए तो राधा जी और कृष्ण जी भी वहां बैठे हुए थे तभी ऋषि अष्टावक्र के भीतर के परमात्मा और ज्ञान को देखकर राधारानी आनंदित होकर मुस्कुराने लगी ऋषि अष्टावक्र को लगा कि वह उनका उपहास उड़ा रही है।

तभी क्रोधित होकर ऋषि अष्टावक्र श्राप देने वाले थे कि कृष्ण ने उन्हे रोक लिया और राधा जी से मुस्कुराने का कारण पूछा तो राधारानी ने बताया कि वह ऋषि अष्टावक्र के अंदर छिपे ज्ञान और परमात्मा को देखकर मुस्कुरा रही है जिसके कारण ऋषि अष्टावक्र ने प्रसन्न होकर राधारानी को हमेशा किशोरी (युवा) रहने का वरदान दिया था। इसलिये राधा जी को किशोरी जी नाम से भी पुकारा जाता है।
जे.के. मंदिर परिसर में राधाष्टमी के अवसर पर निकली रथ यात्रा:
राधे-राधे शब्द की शक्ति में सकरात्मकता, शान्ति और आध्यात्मिक शुदिॄ निहित है इसे जपने से मन शान्त होता है और नकरात्मक विचार दूर होते है। गंगा किनारे बसे कानपुर शहर का नजारा 31 अगस्त राधाष्टमी के दिन देखने लायक था। राधा कृष्ण मंदिर फूलों और जगमगाती रौशनी से सजे हुए थे। शहर का पुराना और प्रख्यात जे.के. मंदिर परिसर में राधा जी के जन्मोत्सव के अवसर पर रथ यात्रा बड़ी धूमधाम से निकाली गई इस यात्रा में पीले रंग के वस्त्र धारण किये महिलायें सिर पर कलश लेकर राधारानी के भजनों में लीन होकर रथयात्रा के द्रश्य को अलौकिक छवि से सुशोभित कर रही थी

सायंकाल के समय सिहांसन में विराजित राधा कृष्ण की एक झलक देखने के लिये भक्तों की भीड़ ललायित हो रही थी। परमट मंदिर का नजारा भी कम अद्भुत नही था भोलेनाथ के दरबार की झाकी में रंग बिरंगी रौशनी और फूल पत्तियों से सजे झूले में स्थापित राधा कृष्ण को झूला झूलते हुए देखकर मंदिर आये भक्तों की नजरें मनमोहक द्रश्य से हटने का नाम नहीं ले रही थी। आखिर क्यों न हो वर्ष में एक बार सम्पूर्ण विश्व में पूजनीय, प्रेम की अलौकिक छवि श्रीराधे का जन्मोत्सव मनाने का अवसर भक्तगणों को प्राप्त होता है।
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