Jwala Devi Temple: यह मंदिर हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक हैं। जहां मां सती की जीभ गिरने से ज्वाला उत्पन्न हुई थी जो आज तक अखंड ज्योति के रूप में जलती हैं। इस मंदिर में देवी ज्वाला के नौ रूप में पूजा की जाती हैं और इस मंदिर में पूरे नौ पवित्र ज्योति हैं, जो प्राकृतिक रूप से हमेशा जलती रहती हैं। इनके नाम महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, हिंगलाज भवानी, विंध्यवासिनी, अन्नपूर्णा, चण्डी देवी, अंजना देवी और अम्बिका देवी हैं। आइए जानते हैं, कि इस नौ ज्योतिों के बारे में…
क्या है इस मंदिर का इतिहास
शास्त्रो में लिखा हैं कि एक समय की बात हैं। जब राक्षस हिमालय के पहाड़ों पर अपना अधिकार जमाते थे और देवताओं को परेशान करते थे। तभी भगवान विष्णु के साथ मिल कर देवताओं ने राक्षसों का वध करने का फैसला किया। उन्होंने अपनी ताकत को एक साथ मिला दिया जिसे जमीन से आग की विशाल लपटें उठने लगी और उसी आग से एक छोटी बच्ची का जन्म हुआ था।

सती के रूप में जानी जाने वाली वह कन्या प्रजापति दक्ष के घर में पली-बढ़ी और बाद में उनकी शादी भगवान शिव से हुई, एक बार सती के पिता ने भगवान शिव का अपमान किया जो सती को स्वीकार नहीं था, जिसे उन्होंने खुद को हवन कुंड मे भस्म कर दिया और फिर जब भगवान शिव को अपनी पत्नी की मृत्यु के बारे में सुना तो उनके गुस्से का ठिकाना नहीं रहा। जिससें सारे देवता शिव के क्रोध के आगे कांप उठे और भगवान विष्णु से मदद मांगी। भगवान विष्णु ने सती के शरीर को टुकड़ों में बंट दिया। जिन स्थानों पर ये टुकड़े गिरे। बाद में वह स्थान 51 शक्तिपीठ कहलाए।
मंदिर का निर्माण और रहस्य
यह मंदिर को पांडवों ने खोजा गया था। जिसका निर्माण राजा भूमि चंद ने कराया गया था और जबकि महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद ने इसका पुनर्निर्माण कराया। यहां नौ दिव्य ज्योतियां हैं जिनकी पूजा की जाती है और मुगल शासक अकबर ने भी इस आग को बुझाने का कई प्रयास किये जिसके बाद भी वह असफल रहे। सदियों से ये आग बिना तेल-घी के अपने आप प्रज्वलित नौ प्राकृतिक ज्वालाएं हैं। वैज्ञानिकों ने कई प्रयास भी आज तक इस ज्वाला के स्रोत और उसके न बुझने के रहस्य का पता नहीं चला हैं।
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