Ganpati Bappa Morya: गणेश चतुर्थी एक ऐसा पर्व है जिसका सभी को बेसब्री से इंतज़ार रहता है। हर गली में सजे हुए पंडाल, घर-घर में गूंजते भजन, बप्पा को घर लाने का उत्साह और आस्था हर किसी के चेहरे पर साफ झलकती है-ये सब मिलकर पूरे वातावरण को उल्लास और उत्सव से भर देते हैं। लेकिन इन रंगों और खुशियों के बीच, गणेश चतुर्थी केवल एक उत्सव भर नहीं है, बल्कि यह पर्व हमें जीवन जीने की कला भी सिखाता है। तो इस गणेश चतुर्थी, बप्पा लेकर आए हैं आपके लिए पांच अनमोल जीवन-पाठ, जो कठिनाइयों के समय करेंगे आपका मार्गदर्शन।
बड़ा सिर-नई सोच और बुद्धिमत्ता
उनका बड़ा मस्तिष्क ज्ञान और विवेक को दर्शाता है। साथ ही हमें यह सीख देता है की जीवन में हमें निरंतर कुछ नया सीखते रहना चाहिए और सामान्य सोच से ऊपर उठकर, सकारात्मक तरीके से सोचना चाहिए। यही अनोखी सोच व्यक्ति को महान और सफल बनाती है।
छोटी आंखें-लक्ष्य पर केंद्रित रहे
गणेश जी की छोटी और गहरी आंखें हमें एकाग्रता का महत्व समझाती है क्युकी आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम अक्सर मायाजाल और भटकाव में फंस जाते हैं। बप्पा की आँखें हमें याद दिलाती हैं कि सफलता पाने के लिए अपने लक्ष्य पर दृढ़ नज़र बनाए रखना आवश्यक होता है। साथ ही, वे यह भी प्रेरित करती हैं कि हमें हमेशा भविष्य में विफलताओ से सीख लेकर, बड़ी और अछी सफलताओ पर ध्यान देना चाहिए।
बड़े कान – सुनने की कला
गणेश जी के बड़े कान हमें यह संदेश देते हैं कि बोलने से अधिक दुसरो को सुनना चाहिए। इसीलिए बप्पा हमें सिखाते हैं कि पहले सुनो, समझो, फिर विचारपूर्वक बोलो क्युकी ध्यानपूर्वसोच-समझकर बोले गए शब्द सुख और शांति लाते हैं, जबकि जल्दबाजी में कहे गए कठोर शब्द रिश्तों को तोड़ सकते हैं।
टूटा हुआ दांत – त्याग का प्रतीक
गणेश जी का टूटा हुआ दांत हमें यह शिक्षा देता है कि बड़ी उपलब्धियां पाने के लिए कभी छोटे-छोटे त्याग करने पड़ते है। बिना त्याग के ज्ञान और सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती। साथ ही यह भी दर्शाता है कि संसाधनों की कमी होने पर कभी हार नहीं माननी चाहिए ,जो हमारे पास है उसी से श्रेष्ठ कार्य करने की कोशिश करनी चाहिए।
मोदक – परिश्रम का फल
गणेश जी के हाथ में रखा मोदक बताता है कि कठिन परिश्रम और संघर्ष के बाद ही जीवन में मीठा फल मिलता है। हमें केवल फल की चिंता किए बिना अच्छे कर्म करते रहना चाहिए। जब सफलता मिले तो उसका घमंड न करके, विनम्रता और आभार के साथ स्वीकार करना चाहिए। यही कठिन परिश्रम और विनम्रता, व्यक्ति को और ऊँचाइयों तक पहुंचाती है।
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