Ganesh Chaturthi 2025:गणेश जी का जन्म भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था। जो शिव और पार्वती के पुत्र है पार्वती जी ने अपने उबटन से गणेश जी को बना कर उनमें प्राण स्थापित किये थे। जब शिव जी पार्वती जी से मिलने के लिये आये तब गणेश जी ने उन्हें पार्वती जी से मिलने से रोक दिया जिसकी वजह से शिव जी अत्यंत क्रोधित हुये और गणेश जी की गर्दन धड़ से अलग कर दी तत्पश्चात पश्चाताप की वजह से शिव जी ने हाथी का सिर गणेश जी पर धारित कर दिया जिसके उपरान्त गणेश जी का पुर्नजन्म हुआ और शिव जी ने वरदान दिया कि किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहले उनकी पूजा की जायेगी।
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विघ्नहर्ता की दो पत्नियां भगवान विश्वकर्मा की पुत्री ॠदिॄ सिदिॄ से उनके दो पुत्र शुभ और लाभ का जन्म हुआ। गणेश जी का पहला अवतार वक्रतुंण्ड है, घुमावदार सूंड वाले वक्रतुंण्ड के हाथों में पॉश (रस्सी), अंकुश और वरमुद्रा धारण है, इनके लम्बे पेट की वजह से इन्हें लम्बोदर भी कहा जाता है। सवारी मूषक और भोग में मोदक, लाल रंग के पुष्प गणेश जी को बेहद प्रिय है।
करोड़ो सूर्य के समान तेजस्वी सूर्यकोटिः
कैलाशलोक में निवास करने वाले विशाल शरीर के महाकाय सुख समृदिॄ, मोक्ष, बुदिॄ, विद्या, शांति, सफलता देने वाले सर्वकार्येषु को हिन्दू धर्म में रिती रिवाज के साथ पूजा जाता है। करोड़ो सूर्य के समान तेजस्वी सूर्यकोटि समप्रभा जी के बड़े कान संदेश देते है कि सब सुनो और विश्लेषण करो, लम्बोदर का लम्बा पेट यह बताता है कि अनुभव को पेट में समेट लो और निर्विहय होकर आगे बढ़ते रहो।

1893 में लोकमान्य तिलक ने किया सर्वप्रथम गणेश चतुर्थी का आरम्भः
Ganesh Chaturthi की शुरुआत पूना में स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगाने और लोगों को एकजुट करने के लिये लोकमान्य तिलक द्वारा की गयी जबकि गणेशोत्सव मंडल की नींव केशव जी नाइक ने रखी थी। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने 1893 में समस्त जातियों को साझा मंच देने एंव विचार विमर्श करने के उद्देश्य से गणेशोत्सव पर सार्वजनिक पूजन का प्रचलन प्रारंभ किया था। गणेश जी का जन्मउत्सव दस दिन तक बहुत धूमधाम से हिन्दू धर्म में मनाया जाता है माना जाता है कि दस दिनों तक चलने वाले सुख समृदिॄ के त्योहार में भगवान गणेश पृथ्वी पर रहकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देते है।

गणेश जी की स्थापना के दसवें दिन होने वाले विसर्जन में यह मान्यता है कि जब गणेश जी दस दिनों तक लगातार महाभारत लिखते रहे तो उनके शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया था जिसकी वजह से वेदव्यास जी ने उनको नदी में स्नान करवाया था जिसके बाद से ही गणेश चतुर्थी के त्योहार पर गणेश जी की स्थापना के बाद विसर्जन की प्रथा चली आ रही है। वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार गणेश चतुर्थी के अवसर पर बड़ी मात्रा में प्राकृतिक मिट्टी से बनी गणेश जी की प्रतिमायें जब जलाशयों में प्रवाहित की जाती है तो इससे जलाशयों का जल शुदॄ होता है और वातावरण में धर्म एंव शुदॄता की परिपूर्णता हो जाती है।
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जे.के. मंदिर में स्थापित विशाल गणेश प्रतिमा
कानपुर शहर के प्रसिदिॄप्राप्त जे.के. मंदिर में भी गणेश जी के जन्मोत्सव के अवसर पर सुन्दर पीले रंग के वस्त्र,गहनें धारण किये एंव रंग बिरगें फूलों से सजे दरबार में गणेश जी की मनभावन प्रतिमा स्थापित की गय़ी जिसकी पूजा अर्चना के लिये प्रतिदिन सैकड़ो भक्तों की भीड़ मंदिर परिसर में उमड़ती है।

इसके अलावा कमला टावर और परमट मंदिर में भी गणेश चतुर्थी के अवसर पर गणेश जी की सुन्दर प्रतिमायें स्थापित की गयी है।
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