Wednesday, September 3, 2025

Education vs Politics: शिक्षा पर भारी राजनीति

Share

Education vs Politics: शिक्षा ऐसा क्षेत्र है जहाँ सीखने के साथ सिखाने के लिये भी प्रयोग में ला सकते है व्यापक रुप और संकुचित रुप में शिक्षा का प्रयोग व्यक्ति के जीवन को ज्ञान, कौशल, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता प्रदान करने के साथ जीवन को उचित मार्गदर्शन देने में अह्मम भूमिका निभाती है। शिक्षा व्यक्तिगत निर्माण के साथ व्यवसायिक मार्ग को भी सरल सुगम बनाने में मदद करती है। वहीं दूसरी ओर शिक्षा चारित्रिक निर्माण और जीवन में नैतिकता लाने के साथ समाजिक मानसिक दायरे को विकसित करने में विशेष भूमिका अदा करती है और जनमानस को सफल और सार्थक जीवनयापन के लिये प्रेरित करती है।

जोहान फ्रेडरिक हर्बर्ट शिक्षाशात्र के जनक:

शिक्षाशास्त्र के जनक होरेसमान एक अमेरिकी शिक्षा सुधारक थे इन्होंने सार्वजनिक शिक्षा को बढ़ावा देने में योगदान दिया था। जबकि लार्ड मैकाले ने आधुनिक शिक्षा प्रणाली को विस्तारित करने में भूमिका निभायी पश्चिमी शिक्षा के जनक प्लूटो और जोहान फ्रेडरिक हर्बर्ट शिक्षाशात्र के जनक के रुप में जाने जाते है। शिक्षा को भविष्यनिर्माता और शिक्षक को भविष्यनिर्माणकर्ता और शिक्षण संस्थानों को शिक्षा के मंदिर की संज्ञा दी गयी है लेकिन शिक्षा क्षेत्र पर भारी पड़ती राजनीति ने शिक्षा से सम्बंधित सभी क्षेत्रों पर पानी फेर दिया है।  

शिक्षा में राजनीति बढ़ा रही बेरोजगारीः

बेरोजगारी हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या है जो प्रत्येक क्षेत्र में दिनों-दिन बढ़ती जा रही है युवा वर्ग कार्य करने के लिये इच्छुक है लेकिन बढ़ती जनसंख्या संस्थानों में अराजकता और राजनीतिक गतिविधियों के कारण पढ़ा लिखा युवा वर्ग अवसरों से वंचित रह जा रहा है। कई संस्थानों में कार्यरत कर्मचारी अपने रिश्तेदारों एंव अयोग्य लोगों को रिश्वत लेकर भर्ती कर रहे है ताकि संस्थान में उनका अधिपत्य और बोलबाला स्थापित रह सके उसके लिये वे साम, दाम, दण्ड, भेद सभी नीतियों को अजमाते दिख रहे है।

वर्षो से संस्थानों में उनके अधीन कार्य कर रहे योग्य कर्मचारियों को स्थायीकरण  करने  का झांसा देकर अपनी कुर्सी का कार्य करवाते रहते है जब कर्मचारी स्थायीकरण की माँग करने लगते है तो अपनी स्थायी नौकरी का रौब दिखाकर उच्चाधिकारियों की नजर में कार्यो में अयोग्य घोषित करके संस्थानों से निकलवाने का प्रयत्न करने लगते है

रिटायर चाहते है एक पद की पेशन तो, दूसरे पद की कुर्सीः

रिटायर कर्मचारी भी युवाओं की बेरोजगारी में बड़ी समस्या बन रहे है जहाँ रिटायर कर्मचारियों को चाहिये कि वे योग्य युवा वर्ग के लिये प्रेरणा का स्त्रोत बने लेकिन बड़ी संख्या में रिटायर वर्ग युवाओं के लिये अभिशाप बन रहा है जहाँ सरकार एक उम्र के बाद उनकों कार्य करने में असक्षम मानकर इसलिये रिटायर करती है ताकि युवाओं के लिये जगह रिक्त हो सके और रिटायर वर्ग को उनको धर्म कर्म करने के लिये निर्धारित समय मिल सके।

लेकिन ये कर्मचारी अपनी उम्र का तर्जुबा 25 से 30 साल के पुराने पद की पहचान लेकर राजनीति से योग्य युवाओं का अधिकार और कुर्सी लेने के लिये दौड़ पड़ते है जिससे पेशन के अतिरिक्त ऊपरी इनकम में इजाफा भी होता रहे और खाली समय का सदुपयोग करके युवाओं को पछाड़ कर आगे बढ़ने का मौका भी मिल सके। जिसकी वजह से भी भारी संख्या युवाओं के लिये  बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है।

ये भी पढ़ें- Uttar Pradesh: पति रील बनाने से रोक रहा था, पत्नी ने चाकू से किया हमला     

और खबरें

ताजा खबर