Case of Genocide of Kashmiri Pandits: जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से जुड़े एक अहम मामले में राज्य जांच एजेंसी (SIA) ने मंगलवार को बड़ी कार्रवाई की है। यह मामला 1990 में कश्मीरी पंडित महिला सरला भट्ट की हत्या से जुड़ा है, जो 35 साल पहले हुआ था। जांच एजेंसी की टीम ने इस मामले में अलग-अलग ठिकानों पर छापेमारी की, जिसमें अलगाववादी नेता यासिन मलिक के घर पर भी दबिश दी गई।
सूत्रों के मुताबिक, SIA की टीम सुबह ही मध्य कश्मीर के कई इलाकों में पहुंची और संबंधित ठिकानों की तलाशी शुरू की। टीम के साथ पुलिस और सीआरपीएफ के जवान भी मौजूद थे, ताकि छापेमारी के दौरान सुरक्षा में कोई कमी न रहे। बताया जा रहा है कि इस दौरान कई अहम दस्तावेज, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और अन्य सबूत जब्त किए गए हैं, जो इस पुराने केस की तह तक पहुंचने में मदद कर सकते हैं।
35 साल पुराना मामला फिर चर्चा में
साल 1990 में घाटी में आतंकवाद के बढ़ते प्रभाव के बीच कश्मीरी पंडितों पर लगातार हमले हुए थे। इन्हीं घटनाओं में से एक थी सरला भट्ट की हत्या। सरला भट्ट एक शिक्षिका थीं, जिन्हें आतंकियों ने बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना ने उस समय पूरे देश को झकझोर दिया था और कश्मीरी पंडित समुदाय में डर और असुरक्षा की लहर दौड़ गई थी। इसके बाद घाटी में बड़े पैमाने पर कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हुआ।
यासिन मलिक की भूमिका पर सवाल
यासिन मलिक, जो पहले जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के प्रमुख रहे हैं, पर पहले से ही कई गंभीर आरोप हैं। वह फिलहाल आतंकवाद से जुड़े मामलों में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं। अब SIA की ताजा छापेमारी ने 1990 के इस हत्याकांड में उनकी भूमिका को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। हालांकि, इस मामले में उनकी संलिप्तता की आधिकारिक पुष्टि जांच पूरी होने के बाद ही हो पाएगी।
जांच एजेंसी का बयान
SIA अधिकारियों का कहना है कि 1990 के इस मामले में अब भी कई अहम कड़ियां जुड़ना बाकी हैं। छापेमारी का उद्देश्य पुराने केस से जुड़े साक्ष्यों को जुटाना और दोषियों को न्याय के कटघरे में खड़ा करना है। एजेंसी का मानना है कि तकनीकी सबूतों और गवाहों के नए बयानों के आधार पर केस में तेजी लाई जा सकती है। पीड़ित परिवार और कश्मीरी पंडित समाज की उम्मीदें।
सरला भट्ट का परिवार और कश्मीरी पंडित समाज लंबे समय से इस मामले में न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं। उनका कहना है कि इतने साल बाद भी अगर दोषियों को सजा मिलती है, तो यह न केवल उनके लिए न्याय होगा बल्कि कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचारों को दुनिया के सामने उजागर करने का काम भी करेगा।
इस छापेमारी ने एक बार फिर 90 के दशक के उन दर्दनाक पलों को ताजा कर दिया है, जब आतंक के साए में हजारों कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। अब देखना होगा कि SIA की इस कार्रवाई से न्याय की दिशा में कितनी प्रगति होती है।
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