Sunday, October 26, 2025

Shardiya Navratri: 29 या 30 सितंबर कब हैं, शारदीय नवरात्रि की अष्टमी और नवमी जानें तिथि, महत्व और पूजन

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Shardiya Navratri: इस बार अष्टमी और नवमी तिथि को लेकर कंफ्यूजन बना हुआ हैं। आपको बता दें कि शारदीय नवरात्रि की शुरूआत 22 सितंबर से हुई हैं और इसका समपान 2 अक्टूबर को दशहर के दिन होगा। दरअसल इस बार तृतीया तिथि दो दिन यानि 23 व 24 सितंबर को रहेने के कारण अष्टमी व नवमी तिथि मे कंफ्यूजन बना हुआ हैं। ऐसे में सवाल हैं कि अष्टमी व नवमी तिथि 29 या 30 सितंबर को कब मनाई जाएगी। तो आइए जानतें हैं कब हैं अष्टमी और नवमी…

अष्टमी और नवमी तिथि

इस बार महाअष्टमी तिथि 29 सितंबर को शाम 4 बजकर 30 मिनट पर आरंभ होगी और वही इसका समापन 30 सितंबर को शाम 6 बजकर 5 मिनट तक रहेगा। हिंदु धर्म के अनुसार उदयातिथि को मान्यता दी जाती हैं। जिससे महाअष्टमी 30 सितंबर को मनाई जाएगी। इस महाअष्टमी को दुर्गा अष्टमी भी कहा जाता है। 30 सितंबर का शाम 7 बजकर 7 मिनट से नवमी तिथि का आरंभ होगा और 1 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 2 मिनट तक नवमी तिथि रहेगी इसलिए नवमी तिथि का पूजन 1 अक्टूबर को किया जाएगा।

नवरात्रि अष्टमी और नवमी पूजन

महाअष्टमी और नवमी इसी दो दिन भक्तजन अपना व्रत खोलते हैंऔर साथ ही हवन करके कन्या पूजन की विधि करते हैं। इस दौरान नौ कन्याओं को सच्चे मन और संकल्प के साथ भोजन कराया जाता है। इस दौरान महागौरी और सिद्धिदात्री को ध्यान में रखते हुए अपनी मनोकामनाएं मांगे।

पूजन विधि

  1. सुबह स्नान कर साफ वस्त्र पहनें और हाथ में जल लेकर व्रत व पूजा का संकल्प लें। पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।
  2. देवी दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर को वेदी पर स्थापित करें। देवी को लाल चुनरी चढ़ाएं और सिन्दूर, कुमकुम, अक्षत, रोली, मौली, लाल फूल, फल और मिष्ठान अर्पित करें।
  3. घी का दीपक जलाएं और धूप दिखाएं और देवी दुर्गा का गंगाजल या पंचामृत से अभिषेक करें।
  4. दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करें और देवी के मंत्रों का जप करें। देवी मैं को नारियल का भोग लगाकर हलवा-पूरी और चना का भोग भी लगाएं।
    • कपूर और लौंग से देवी की आरती करने के बाद कन्याओं को आमंत्रित करें, उनके पैर धोएं, टीका करें, और उन्हें भोजन में हलवा-पूरी, खीर और चना खिलाएं।

क्या हैं अष्टमी और नवमी का महत्व

नवरात्रि में अष्टमी और नवमी का विशेष महत्व होता है। अष्टमी को महागौरी स्वरूप की पूजा की जाती है जबकि नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की आराधना होती है। इन दोनों दिनों को शक्ति, सिद्धि और शांति प्राप्ति के लिए सबसे शुभ माना जाता है। परंपरागत रूप से अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन और हवन भी किया जाता हैं और भक्तजन अपना व्रत खोलती हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, महाअष्टमी पर मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध किया था। इसलिए इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक माना जाता हैं। इस दिन पर मां दुर्गा के आठवें रूप, महागौरी की पूजा-अर्चना का विधान है। सनातन धर्म में नवमी को सीता नवमी भी कहा जाता हैं। इस सीता नवमी का खास महत्व है। इस दिन जगत जननी मां सीता की पूजा की जाती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि के लिए व्रत रखा जाता है। विवाहित महिलाएं सीता नवमी के दिन व्रत रख भगवान श्रीराम और मां जानकी की भक्ति भाव से पूजा करती हैं।

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